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सीख और आशा का समन्वित रूप है शिक्षा, दोनों की है जरूरत आज जन - जन लप शिक्षा का वास्तविक अर्थ समझना होगा।

शिक्षा अर्थात सिख और आशा। सीख जो जीवन के आयाम बदल देती है, और आशा जो जीवन में एक नई ऊर्जा भर देती है। आज जन-जन को शिक्षा का वस्तविक अर्थ समझाना होगा। यह समझना होगा कि शिक्षा से तात्पर्य क्या है ? क्या कॉलेज या स्कूल में दी जाने वाली शिक्षा ही शिक्षा है या इससे इतर इसका कुछ गहन मतलब है। मेरे ख्याल से शिक्षा केवल वह नहीं है, जो स्कूल और कॉलेज में दी जाती है। वास्तव में मनुष्य के आसपास संपूर्ण वातावरण उसका शिक्षक है। बालक बालयकाल से ही अपने आसपास के लोगो और घटनाओ से जाने - अनजाने बहुत साडी चीज़े सिखाता है और यही कालांतर में उसका अनुभव बनते है, जिस अनुभव के आधार पर वह जीवन में विभिन परिस्थितियों का सामना करता है। आज के समय जब दुनिया में किसी भी जगह की जानकारी व्यक्ति या कहा जाए छात्रों से एक क्लीक की दुरी पर है, तो ऐसे में स्कूलों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। उन्हें समझना होगा कि उन्हें सही मायनों में ऐसे पाठ्यक्रम का निर्माण करना होगा, जहां विद्यार्थी का मात्र शैक्षिक विकास न हो वरन उसमें जीवन कौशल, सांस्कृतिक, सामाजिक, स्वावलंबन व विशलेषणातमक दृष्टिकोण का भी विकास हो। जहां विद्यार्थी सिर्फ कक्षा प्रोन्न्ति के लिए न पढ़े, बल्कि इसका सामयिक व व्यावहारिक प्रयोग जानें - समझें और खुद उसे व्यवहार में उतारकर अपने अनुभव के तौर पर ग्रहण करें। एक शब्द में कहें, तो आज ऐसे गुरुकुलों की आवश्यकता हैं, जो मोर्डर्न विद्यालय की तरह आधुनिक हों, लेकिन बच्चों को व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करें। ऐसे स्कूल जहां विद्यार्थी को पारम्परिक शिक्षा पद्धति के साथ आधुनिक व्यापक दृष्टिकोण तथा उच्च तकनीक सिखाई जाए और विद्यार्थी को स्वयं प्रयोग कर सीखने का मौका दिया जाए ताकि बच्चा आत्मविश्वासी बने। जहां बच्चा किसी एक विषय नहीं बल्कि विविध विषयों की जानकारी रखता हो। यह विद्यालयों की जिम्मेदारी है कि वे अपने विद्यार्थी को बहुआयामी बनाएं, ताकि वह किसी भी परिस्थिति से पार पाने में खुद को सक्षम माने। विपरीत स्थिति में तनावग्रसित न होकर एक विकल्प के काम ना करने पर नया विकल्प पूर्ण आत्मविश्वास के साथ चुने और आगे बढ़े। आज जरूरत है कि विद्यालय केवल लाड़ले नहीं, बल्कि जुगाडु बच्चे बनाएं, जो किसी भी विषमता से पार पा सकते है।