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महिलाएं अपनी नैसर्गिक उद्यमिता को पहचानें

महिलाएं नैसर्गिक उद्यमी होती हैं। किसी भी काम को सोचना, उसको करना और लक्ष्य तक पहुंचाकर पूर्ण करना ही उद्यमिता है। नए कार्य करते रहना और उनकोलक्ष्य तक पहुंचाना महिलाओं में प्रकृति प्रदत्त होता है। शादी के बाद नए घर में जाना और वहां पर पूरी व्यवस्थाओं को संभालते हुए नए परिवेश में अपने परिवार को स्थापित करना, बच्चों को सुसंस्कारित करना और उन्हें एक मुकाम तक पहुंचाना, एक प्रतिष्ठान को चलाने से कम नहीं है। महिलाएं  नौकरी व व्यवसाय के साथ घर भी बखूबी चला रही हैं। देश की लगभग 48 प्रतिशत आबादी महिलाओं की है और केवल 12 से 13 प्रतिशत महिलाएं ही कामकाजी हैं। एक बड़ी आबादी की नुमाइंदगी करने वाली महिलाएं देश की आर्थिक व्यवस्था में अपनी नैसर्गिक उद्यमिता से अमूल्य योग दे सकती हैं। जरूरत है, अपने आपको पहचानने की। यह आवश्यक नहीं है कि बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठान की ही स्थापना की जाए। महिलाएं अपने छोटे-छोटे व्यवसाय शुरू कर देश की जीडीपी में और परिवार की आमदनी में आर्थिक प्रबलता दे सकती हैं।
इसलिए अपने आपको पहचानिए। झिझक छोड़ कर काबलियत से किसी भी क्षेत्र में जा सकती हैं। कुछ महिलाएं अच्छी चित्रकारी करती हैं परंतु वे आगे नहीं बढ़ पाती। ग्रेजुएट- पोस्ट ग्रेजुएट महिलाएं अच्छा लेखन करती हैं, लेकिन उनकी प्रतिभा आगे नहीं आ पाती। कई विधाओं में योग्य होने के बावजूद वे क्षमताओं को पहचान नहीं पाती। आवश्यकता है अपनी क्षमताओं को पहचानने व समय प्रबंधन की। सामाजिक उद्यमिता एक ऐसा क्षेत्र है, जहां महिलाएं थोड़ा समय देकर आर्थिक विकास में योग दे सकती हैं। जैसे शिक्षा, हेल्थ एंड न्यूट्रिशन, योग, संगीत, वित्तीय साक्षरता ऐसे क्षेत्र हैं जिसमें महिलाओं का योगदान महत्वपूर्ण है। सफल उद्यमी के लिए धैर्यवान, परिस्थितयों का सही आकलन, जोखिम लेना, जुनूनी, परिस्थितयों के अनुसार ढालना वित्तीय प्रबंधन, योजनाबद्ध नीति और सबको साथ लेकर चलना जैसे गुण महिलाओं में जन्मजात होते हैं।